Monday, May 25, 2020

श्रीकृष्ण स्तुति


  ॐ कृष्ण कृष्ण महाकृष्ण सर्वज्ञ त्वं प्रसीद मे। रमारमण विद्येश विद्यामाशु प्रयच्छ मे ।। 

श्रीकृष्ण स्तुति


श्रीकृष्ण स्तुति
कान्हा के मग में, मीरा मगन हैं ।
केशव के नख में, गगन ये नगण है ।
गोपियों के रंग में, माधव रगन है ।
देखि ये मरम उधौ, हृदय नमन है ।

देवकी के लाल है , काल है कंस के,
बाल है यशोदा के, लाल नन्द नन्द के ।
ब्रज के रज है, धुलि है मग के,
चिह्न है कान्हा के, पग है चलन के ।
ग्वालन के मोहन है, वट है कानन के,
चोर है माखन के , नयन चतुरानन के ।
श्रीदामा के साथी है, साथ है सुदामा के,
मित्र है मधुमंगल के, पितृ प्रतिभानु के ।
संगी है विशाल के, मनमीत है रसाल के,
बाहु है सुबाहु के, बुभुक्षु भोज-भोज के ।
संदीपनी के शिष्य है, प्रियतम है राधा के ,
सखा है अर्जुने के , गोप ग्वाल संग के ।
शरण है कमला के, नीर है कालिन्दी के,
चक्षु में है सत्या के, वक्ष जाम्बवती के ।
भद्रा के भरण है, प्रीति है मित्रबिन्द्रा से ,
स्नेह है लक्ष्मणा के, गोपिन के शेष है ।        
गोपिन के मीत है, प्रीति है सत्यभामा के,
सहोदर है हलधर के, प्रवाह सुरसरि के ।
अनाथ के नाथ है, प्राणनाथ लक्ष्मी के,
स्वामी है रूक्मिणी के, ईश शेषनाग के ।
पितु है भद्र के, तात है सुभद्र के,
हृदय है सुभद्रा के, अरि वीरभद्र के ।
कमला है चरण में, कमलनयन शेष पर ,
नभ है नाभि में, दासी-सखा शीश पर ।
दिनकर के ओज है, सरोज है जल के ,
हुताशन है अनिल के, नभ नभचर के ।
गति है ग्रहों के, भाव है स्वभाव के,
युग है युगों के ये, योगीराज योग के ।
लयों के छन्द है, तार है सितार के,
ताल है मृदंग के, करताल कीर्तन के ।
मीरा के वीणा है, सुर है श्याम के ,
भाग है रहीम के, खान रसखान के ।
अरि है तिमिर के, बसंत है शिशिर के,
रीती है कुरीति के, ज्योति नयन के ।
ग्रन्थों के वेद है, वेदना है दीन के,
प्रचूर है अभाव के, मूल निर्मूल के ।
अकाल के काल है , भिज्ञ है अनभिज्ञ के,
अनादि है अनन्त के , ज्ञान प्रवीण के ।
रासों के रास है, श्रृंगार है रसों के,
गंधर्व है नृत्यों के, कुबेर धनराशि के ।
निष्कामी के काम है, प्रलोभ है लोभ के,
निशा है निशाचर के, अचर चराचर के ।
विष है हलाहल के, अरि है कलह के,
सौन्दर्य है रति के, उमंग देवकी के ।
अंग है अनंग के, तीर है निषंग के,
पंकज है पंक के, गरल भुजंग के ।
यश है कुयश के , स्वरूप है अंश के,
विघ्नहरण है गणेश के, शरण महेश के ।
ईश है दिनेश के, पूजते सुरेश है,
शिखर है विन्ध्य के, भजति दक्षेश है ।
शेष है धरित्री, शीश है ये शेष के,
रूप मगधीश के, चरण जगदीश के ।
उद्धोषक है युद्ध के, विदुर है नीति के,
गोपाल है जगत के, बैरि शिशुपाल के ।
प्राणियों के प्राण है ,नाश है विनाश के,
चक्र है ग्रहों के ये, प्रणाम नाथ चक्रधर  ।
बलि के है द्वारपाल, पालक है ध्रुव के ,
ऐसों रणछोंण को, प्रणाम नत शीश है ।

पं0 अखिलेश कुमार शुक्ल


19 comments:

  1. जय श्रीकृष्ण🙏
    राकेश

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    1. जय श्री कृष्णा दीगरा

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  2. हरे हरे कृष्णा

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  3. Replies
    1. सादर प्रणाम । जय श्री कृष्णा ।

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  4. बहुत सुंदर भाई। जय श्री कृष्णा

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    1. जय श्री कृष्णा भाई ।

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  5. अति सुंदर प्रस्तुति जय श्री कृष्णा

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  6. This comment has been removed by the author.

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