प्रस्तुत कविता में एक मां के गर्भ में पल रही
बच्ची का अपनी मां से इस कलुषित समाज के प्रति एक वेदना को प्रदर्शित किया गया है । शब्द:
कलुषित –
मलीन,
नग्नमुषित
– जिसका सब कुछ लूट लिया गया हो यहां तक की वस्त्र भी
।
शीर्षक - माँ और उसकी कोख
दादा की बेरंग सोच,
दादी के बेढंग बोल,
पिता की अनकही वेदना,
काकी की नष्ट होती चेतना,
को देखकर ;
गर्भ से एक अनखिली मासुम
सी;
मेरी कली बोली-
माँ ! क्या
मैं बाहर आ जाऊं ?
क्या यह समाज इतना कलुषित ?
जो, नव-कंचन-बालाओं को करता हरदम नग्नमुषित ,
जगद्धात्री, जन्मदात्री, अधिष्ठात्री, सहोदरा
भी मैं,
फिर भी ये करते इतना शोषित ,
ऐसे अचेत, नग्नावशेष जिसकी पोखर की प्याऊं मैं,
अंतः मन से उठ रहा विषाद,
माँ ! क्या
मैं बाहर आ जाऊं ?
इनके गन्दे इशारे,
अश्लील हरकते,
घूरती निगाहें,
अब पार करती सरहदें ।
मन्दिरों में सर नवातें,
पढ़ते कुरान की आयतें,
कामना की आग में,
फिर भी मुझे जलातें ।
माँ ! क्या
मैं बाहर आ जाऊं ?
अभिमान इनको पुरूषत्व का,
तो मेरे बिना अस्तित्व क्या ?
अहं इनको सामर्थ्य का,
तो मेरे बिना अर्थ क्या ?
यदि स्वाभिमान इनका है ,
तो मान भी तो मेरा है ।
यदि शक्ति के पुजारी ये,
पर है तो ये व्यभिचारी ही ना ।
जिस गर्भ से उत्पन्न हुए,
उसे ही खोजते है क्युं ये माँ ?
टुट गयी आस,
क्यां किंचित नही है लाज ?
इनकी हैवानियत के कारण,
क्युं मैं ही मिटुं सदा,
माँ ! मैं
तुझको शीश नवाऊं ।
माँ ! क्या
मैं बाहर आ जाऊं ?
बिखरें हुए केशों को नोंचते हुए,
मुट्ठीयों को भींचकर श्वासों को उर्ध्व में खींचते
हुए,
पीसते हुए दांतों से, दम तोड़ती शरीर की ये
अकड़न,
हाय प्रकृति तु इतना निर्मम !
कोख की ये प्रसव पीड़ा,
असहनयीय वेदना से नख-शिख तक हुआ पसीना,
लाल हुयी आंखे, मस्तिष्क हुआ शुष्क,
शरीर हुआ बदहवास, कोई न रहा साथ,
छुटती जीवन की आस,
अस्थि पिघल गया, रक्त निकल गया, फिर भी न
छोड़ी श्वास
जीवित रही मेरी आस,
दर्द से चीखती, चिल्लाती, कराहती;
फिर भी एक तुम ही तो थी, माँ !
जो प्रतिपल मुझे बुलाती ,
हाँ ! आ
जाओ ।
हाँ ! आ
जाओ ।
पं0 अखिलेश कुमार शुक्ल
👌अति सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद
DeleteBahut Sundar kavita
ReplyDeleteधन्यवाद अपना अनमोल समय देने के लिेए .
Deleteबहुद सुन्दर
ReplyDeletethanku dost
DeleteIs samaj ke ek andhkaar ko bade hi adbhut roop se aapne panktiyon me utara hai adbhut, alaukik rachana hai bade bhrata 🙏
ReplyDeleteआप भाईय बस इसी प्रकार से शुभाशीष बना रखें
DeleteAti sunder
ReplyDeleteThanks bro
Deleteअति सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद भाई
DeleteSuperb poem bhai...har ek word se pata chala ki us bacchi pe kya bitti h....last para bohot hi accha h❤
ReplyDeleteअपना बहूमुल्य समय देने के लिए धन्यवाद आपका । ऐसे ही मार्गदर्शन करते रहे ।
DeleteBahut hi sundar
ReplyDeletealot of thanks
Deleteआदरणीया/आदरणीय आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-३ हेतु नामित की गयी है। )
ReplyDelete'बुधवार' ०६ मई २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"
https://loktantrasanvad.blogspot.com/2020/05/blog-post_6.html
https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
आदरणीय सादर प्रणाम,
Deleteआपने के द्वारा 'लोकतंत्र'' संवाद मंच पर मेरी कविता को स्थान के देने के लिए आपको हृदय से साभार । आपके द्वारा साहित्य एवं साहित्य के सृजनकर्ता दोनों को एक मंच प्रदान करते हुए साहित्यिक इतिहास में उनको एक स्थान देने का कार्य भी बहुत ही प्रशंसनीय/सराहनीय है ।
सादर प्रेम "अखिलेश कुमार शुक्ल"
वाह
ReplyDeleteआदरणीय सुनील कुमार जोशी जी
Deleteआपके द्वारा मेरी कविता को अपना अमूल्य समय देते हुए उत्हासवर्धन हेतु सादर धन्यवाद आपको । इसी तरहसे अपनी कृपादृष्टि बनाते हुए उचित मार्गदर्शन करते रहै यही मेरा आपसे विनम्र अनुरोध है ।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 11 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteपरम आदरणीया,
Deleteअपने छोटे भाई के इस कविता को अपने मंच पर स्थान देने के लिए धन्यवाद । इसी तरह से मेरी रचनाओं पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उत्साहवर्धन करते रहे , जिससे की आपके मार्गदर्शन एवं शुभाशीर्वाद से भविष्य में एक उत्कृष्ट रचना करने का गौरव प्राप्त हो ।
वेदना और पीड़ा का मर्मांतक आर्तनाद
ReplyDeleteआदरणीया सादर प्रणाम,
Deleteइस कविता के क्षेत्र में अभी मैं गर्भस्थ शिश सा ही हुं बस आपलोग उचित मार्गदर्शन एवं उत्साहवर्धन करते रहेै । आपका आभारी हुँ आपने मेरे ब्लाग पर समय दिया । सादर धन्यवाद ।
अब कन्या भ्रूण की जानकारी पाना क़ानूनी अपराध है फिर भी कलुषता से भरे संसार में कन्या का आना स्वाभाविक है. गर्भ में कन्या भ्रूण की कश्मकश को मार्मिक अभिव्यक्ति दी है. आदरणीय आपने माँ बेटी की वार्तालाप का मार्मिक शब्द चित्र.
ReplyDeleteउत्कृष्ट रचना.
सादर.
आदरणीया सादर प्रणाम,
Deleteइस समाज में पत्नी, बहन , मां सभी को चाहिए सिवाय एक कन्या के । बस इस समाज से उसकी एक वार्ता है और एक मां कितने मेहनत से एक पुत्री को जन्म देने के पश्चात् भी कितने दुखों/यातनाओं को सहन करते हुए अपनी बच्ची का पालन-पोषण करती है । मां से बड़ा योद्धा इस सृष्टि में कोई नही है । सादर धन्यवाद ।