Sunday, April 12, 2020

माँ और उसकी कोख

माँ और उसकी कोख


प्रस्तुत कविता में एक मां के गर्भ में पल रही बच्ची का अपनी मां से इस कलुषित समाज के प्रति एक वेदना को प्रदर्शित किया गया  है । शब्द:  कलुषित – मलीन,   नग्नमुषित – जिसका सब कुछ लूट लिया गया हो यहां तक की वस्त्र भी

शीर्षक - माँ और उसकी कोख

दादा की बेरंग सोच,
दादी के बेढंग बोल,
पिता की अनकही वेदना,
काकी की नष्ट होती चेतना,
को देखकर ;
गर्भ से एक अनखिली मासुम सी; 
मेरी कली बोली-
माँ ! क्या मैं बाहर आ जाऊं ?

क्या यह समाज इतना कलुषित ?
जो, नव-कंचन-बालाओं को करता हरदम नग्नमुषित ,
जगद्धात्री, जन्मदात्री, अधिष्ठात्री, सहोदरा भी मैं,
फिर भी ये करते इतना शोषित ,
ऐसे अचेत, नग्नावशेष जिसकी पोखर की प्याऊं मैं,
अंतः मन से उठ रहा विषाद,
माँ ! क्या मैं बाहर आ जाऊं ?

इनके गन्दे इशारे,
अश्लील हरकते,
घूरती निगाहें,
अब पार करती सरहदें ।
मन्दिरों में सर नवातें,
पढ़ते कुरान की आयतें,
कामना की आग में,
फिर भी मुझे जलातें ।
माँ ! क्या मैं बाहर आ जाऊं ?

अभिमान इनको पुरूषत्व का,
तो मेरे बिना अस्तित्व क्या ?
अहं इनको सामर्थ्य का,
तो मेरे बिना अर्थ क्या ?
यदि स्वाभिमान इनका है ,
तो मान भी तो मेरा है ।
यदि शक्ति के पुजारी ये,
पर है तो ये व्यभिचारी ही ना ।
जिस गर्भ से उत्पन्न हुए,
उसे ही खोजते है क्युं ये माँ ?
टुट गयी आस,
क्यां किंचित नही है लाज ?
इनकी हैवानियत के कारण,
क्युं मैं ही मिटुं सदा,
माँ ! मैं तुझको शीश नवाऊं ।
माँ ! क्या मैं बाहर आ जाऊं ?

बिखरें हुए केशों को नोंचते हुए,
मुट्ठीयों को भींचकर श्वासों को उर्ध्व में खींचते हुए,
पीसते हुए दांतों से, दम तोड़ती शरीर की ये अकड़न,
हाय प्रकृति तु इतना निर्मम !
कोख की ये प्रसव पीड़ा,
असहनयीय वेदना से नख-शिख तक हुआ पसीना,
लाल हुयी आंखे, मस्तिष्क हुआ शुष्क,
शरीर हुआ बदहवास, कोई न रहा साथ,
छुटती जीवन की आस,
अस्थि पिघल गया, रक्त निकल गया, फिर भी न छोड़ी श्वास
जीवित रही मेरी आस,
दर्द से चीखती, चिल्लाती, कराहती;
फिर भी एक तुम ही तो थी, माँ !
जो प्रतिपल मुझे बुलाती ,
हाँ ! आ जाओ ।
हाँ ! आ जाओ ।

                          पं0 अखिलेश कुमार शुक्ल


25 comments:

  1. 👌अति सुंदर

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    1. धन्यवाद अपना अनमोल समय देने के लिेए .

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  3. Is samaj ke ek andhkaar ko bade hi adbhut roop se aapne panktiyon me utara hai adbhut, alaukik rachana hai bade bhrata 🙏

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    1. आप भाईय बस इसी प्रकार से शुभाशीष बना रखें

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  4. Superb poem bhai...har ek word se pata chala ki us bacchi pe kya bitti h....last para bohot hi accha h❤

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    1. अपना बहूमुल्य समय देने के लिए धन्यवाद आपका । ऐसे ही मार्गदर्शन करते रहे ।

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    1. आदरणीय सुनील कुमार जोशी जी
      आपके द्वारा मेरी कविता को अपना अमूल्य समय देते हुए उत्हासवर्धन हेतु सादर धन्यवाद आपको । इसी तरहसे अपनी कृपादृष्टि बनाते हुए उचित मार्गदर्शन करते रहै यही मेरा आपसे विनम्र अनुरोध है ।

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  6. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 11 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. परम आदरणीया,
      अपने छोटे भाई के इस कविता को अपने मंच पर स्थान देने के लिए धन्यवाद । इसी तरह से मेरी रचनाओं पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उत्साहवर्धन करते रहे , जिससे की आपके मार्गदर्शन एवं शुभाशीर्वाद से भविष्य में एक उत्कृष्ट रचना करने का गौरव प्राप्त हो ।

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  7. आदरणीय सादर प्रणाम,
    आपने के द्वारा 'लोकतंत्र'' संवाद मंच पर मेरी कविता को स्थान के देने के लिए आपको हृदय से साभार । आपके द्वारा साहित्य एवं साहित्य के सृजनकर्ता दोनों को एक मंच प्रदान करते हुए साहित्यिक इतिहास में उनको एक स्थान देने का कार्य भी बहुत ही प्रशंसनीय/सराहनीय है ।
    सादर प्रेम "अखिलेश कुमार शुक्ल"

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  8. वेदना और पीड़ा का मर्मांतक आर्तनाद

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    1. आदरणीया सादर प्रणाम,
      इस कविता के क्षेत्र में अभी मैं गर्भस्थ शिश सा ही हुं बस आपलोग उचित मार्गदर्शन एवं उत्साहवर्धन करते रहेै । आपका आभारी हुँ आपने मेरे ब्लाग पर समय दिया । सादर धन्यवाद ।

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  9. अब कन्या भ्रूण की जानकारी पाना क़ानूनी अपराध है फिर भी कलुषता से भरे संसार में कन्या का आना स्वाभाविक है. गर्भ में कन्या भ्रूण की कश्मकश को मार्मिक अभिव्यक्ति दी है. आदरणीय आपने माँ बेटी की वार्तालाप का मार्मिक शब्द चित्र.
    उत्कृष्ट रचना.
    सादर.

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    1. आदरणीया सादर प्रणाम,
      इस समाज में पत्नी, बहन , मां सभी को चाहिए सिवाय एक कन्या के । बस इस समाज से उसकी एक वार्ता है और एक मां कितने मेहनत से एक पुत्री को जन्म देने के पश्चात् भी कितने दुखों/यातनाओं को सहन करते हुए अपनी बच्ची का पालन-पोषण करती है । मां से बड़ा योद्धा इस सृष्टि में कोई नही है । सादर धन्यवाद ।

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