सन्यासी
साधक बनकर साधना वस;
जाते हो तुम तप-वन,
पुत्र, पौत्र, मित्र, अर्द्घागिंनी
छोड़ मोह सर्वस्व त्याग ।
ग्रहण करते पंच गुरू दीक्षा,
करते स्वजन का पिंडदान,
करके वेधव्य पुरूष्त्व प्रतीक को,
अखंड ब्रह्मचर्य पालन करके,
अपने ऊर्जां को संचित करते ।
छोड़ वस्त्र ;
धारण कर पट-पीत पात,
त्याग अन्न;
भक्षण करते फल-नीर-वात,
शुष्क वदन, अभ्यंतर नयन ।
रमत भस्म है, मिलत दण्ड,
मुंडित मूर्धा , रख जटाजूट,
दृश्य कंकाल, ओजित कपाल,
रूद्राक्ष पहन, श्मश्रु सघन,
साथ कमंडलु, करते भिक्षाटन ।
यश-अपयश धन वैभव का ,
करते कोई लोभ नही,
माय-जड़ता से विरक्त होकर,
ईश्वर में ही तल्लीन रहें,
अंतःमन का तिमिर मिटाते,
ज्ञान-चक्षु की ओट हटाते,
प्रतिपल सबको शीश नवाते,
तब जाकर सन्यासी कहलाते ।
होते आसक्तिहीन, वैराग्यलीन,
विचरण करते गिरि कानन-कानन,
करते स्खलित; द्वेष-भाव मन की,
भूल सुध-बुध सकल जग की,
काम-क्रोध-लोभ-मोह-मद-मत्सर,
भस्म करते समस्त षडांग विकार,
तपोग्नि में कुत्सित विचारों की आहूति से ,
प्रज्वलित करते वैराग्य की अग्नि,
राग-द्वेष से हीन,
परोपकार में लीन,
मद-मस्त रहते प्रतिपल प्रकृति में,
अन्तःमन से द्वन्द्वहीन,
अनुभुत करते हिम-शिखर से,
जीत लेते जब इन्द्रियों को,
वेध करके अनन्त नभ को,
जाते है उस पार,
पाने को निर्वाण,
नश्वर-शरीर से मिटा भेद,
जपत निरन्तर हरिःॐ शरणं मम ।
होते योनिज;
पर नभ में विचरण करते है अण्डज सा,
आत्मबोध, अंतःदर्शन से,
चिन्तन करते अवचेतन मन का,
भक्तियोग के माध्यम से,
देता उपाख्यान कर्मयोग का,
आत्मा से पृथक ,
ममताविहीन होता भोगों से,
अष्टांग योग औ'
धारण-ध्यान-समाधि से,
होते यह अंतःक्रीडक अंतःमुखी,
विरक्त होते त्रिविध ताप से,
हो जाती है दृष्टि समष्टि ।
कंटक मार्ग, कठिन तप-बल से;
निज उर में रखते बड़वानल,
करते साध्य से मधुर मिलन,
रहता यह सामुहिक है,
पर अंतःमन से एकांकी यह,
परित्याग कर अंतःक्षिप्त अहं भाव को,
सन्मार्ग पथिक बन जाता है,
निर्विकार, निर्लिप्त हृदय से,
राग भैरवी भजन सुनाता,
नीरस मन को भी विह्वल कर देता,
भक्तिमय संसार बनाता,
मोह-जगद् में तब जाकर,
सन्यासी वह है कहलाता ।
पं0 अखिलेश कुमार शुक्ल की कलम से
Nice thought about sanyasi
ReplyDeleteधन्यवाद भ्राता श्री
DeleteNice
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteशुक्रवार के चर्चाकार को चर्चा मंच में लगाने के लिए
इस पोस्ट का लिंक भेज दिया है।
आदरणीय आपका धन्यवाद । आप इसी तरह से मार्गदर्शन करते रहे ।
Deleteइस ब्लॉग पर समर्थक (फालोबर्स) का विजेट भी लगा दीजिए।
ReplyDeleteमुझे ब्लाग के बारें में अत्यधिक जानकारी नही है । अगर आप कुछ मदद कर सकते है तो आपकी बड़ी कृपा होगी । मैं आईडी/पासवर्ड आपको अपना दे सकता हुँ ।
Deleteसादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (08-05-2020) को "जो ले जाये लक्ष्य तक, वो पथ होता शुद्ध"
(चर्चा अंक-3695) पर भी होगी। आप भी
सादर आमंत्रित है ।
"मीना भारद्वाज"
सादर नमस्कार,
Deleteमेरी रचना को अपने चर्चा अंक स्थान प्रदान करने के लिए आपका हृदय से आभार । मैं वर्तमाम में उ0नि0 उ0प्र0पु0 प्रयागराज जोन में कार्यरत होने के कारण कल दिनांक 08.05.2020 को मा0 मुख्यंत्राी महोदय के वीडियों कान्फ्रेसिंग में कोरोना के सम्बन्ध में सम्मिलित होने के कारण चर्चा में सहभाग नही कर सका । इसके लिए क्षमाप्रार्थी हुँ ।
सृजन कार्य के साथ साथ कार्यालय दायित्व भी वहन करने आवश्यक हैं । मंच आप सबका है आप जब भी पधारेंं
Deleteआपका स्वागत है 🙏
लाज़बाब सृजन सर ,सादर नमस्कार
ReplyDeleteसादर नमस्कार,
Deleteउत्साहवर्धन के लिए आपका धन्यवाद . बस अगर काव्य रचना में कोई कमी हो तो उचित मार्गदर्शन अवश्य करे आप । सीख रहा हुं अभी ।
आदरणीय अखिलेश शुक्ल जी, अपने सन्यासी बनने की पूरी प्रक्रिया को चित्रित किया है। सुन्दर सृजन। साधुवाद ! --ब्रजेन्द्र नाथ
ReplyDeleteआदरणीय ब्रजेन्द्र नाथ जी
Deleteसादर प्रणाम,
इतनें सुंदर शब्दों से आपने प्रशंसा की है कि आपके द्वारा लिखे गए शब्द स्वयं मेें एक गद्य काब्य है । आपका आभारी हुं कि आपने अपना अमूल्य समय देकर मेरी रचना को पढ़े और अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया भी दिए । धन्यवाद ।
बेहतरीन सृजन आदरणीय सर
ReplyDeleteनमस्कार ।
Deleteबहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteआदरणीय सादर प्रणाम ,
Deleteआपका धन्यवाद जो आपने अपना अमूल्य समय देकर मेरी रचना को पढ़ा । सादर धन्यवाद ।
Wah Kya bat hai
ReplyDeleteबस छोटा सा प्रयास है मित्र
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