Saturday, May 23, 2020

निबन्ध-उपनाम की योग्यता


उपनाम की योग्यता

भारत देश एक विशाल देश है, जहां पर विभिन्न प्रकार की उपाधियां एवं उपनाम कुछ विशेष किस्म के व्यक्ति को ही जाती है । यह सम्पूर्ण उपाधियां उन्ही व्यक्तियों को दी जाती है जिसका उस सम्बन्धित पद से कोई भी सरोकार नही होता है । आप लोग राष्ट्रपिता, राष्ट्रीय चाचा आदि लोगों को जानते है जो कि यथार्थं में उन्हीं को दिया गया जो इनके योग्य थे परन्तु अत्यधिक मात्रा में इससे विपरीत भी इस तरह की संज्ञा प्रदान की गयी है ।
आइए अब वर्तमान परिदृश्य में बहुतायात मात्रा में होने वालें कुछ उपाधियों से हम आपको परिचित कराना चाहते है, जिनसे हमलोग प्रतिदिन कहीं न कहीं दिन में एकाध बार अवश्य मिल जाते है , जैसे हमारे गांव में एक नाम है विधायक परन्तु विधायक की बात तो बहुत दूर है, वह मेरे वार्ड का न ही सदस्य है और न ही बनने के काबिल है । इसी प्रकार हमारे एक बड़े भाई साहब का नाम है दरोगा जी, उनकी भी यही खुबी है कि आज तक दरोगा की बात तो बहुत दुर है होमगार्ड की भी परीक्षा नही दिए है । काबिलियत की बात की जाए तो चौकीदार भी बनने के योग्य नही है, लेकिन भाई अब गांव वालों का पता नही कौन सा प्यार है और उनके अन्दर ऐसी कौनी सी त्रिनेत्र की दृष्टि है, जिससे वो बचपन में ही बच्चों के योग्यता को पहचानते हुए उसे इन उत्कृष्ट उपाधियों से नवाज देते है और उस बच्चे का भविष्य उस दिन के बाद से कभी भी उस पद के योग्य नही बन पाता । उपनाम धारित ऐसे विचित्र महापुरूष जीवन भर उस अलंकृत नामकरण का बोझ अपने कन्धे पर ढोते रहते है और हम जैसे लोगों के द्वारा यथासम्भव शादियों, सामाजिक समारोहों एवं गोष्ठियों में उसी अलंकृत उपाधियों के द्वारा एवं उसी पद के अनुरूप उन्हे सम्मान भी दिया जाता है ।
          हम सभी के गांवों में दरोगा, विधायक, कलेक्टर, जज, डी.एम., नेता , विधायक, प्रधान नाम के व्यक्ति भी बहुतायात मात्रा में पाए जाते है जिनका कोई भी सम्बन्ध इस पद से नही होता है ।
          अब हम बात करते है पुलिस विभाग की तो इस विभाग की लीला तो अपरम्पार है । यहां पर बहुत ही कम लोग है जो कि अपने मूल पद के नाम से जाने जाते है । उनके सगे-सम्बन्धी एवं उनके क्षेत्रीय चापलूस गणों के द्वारा बिना किसी आदेश के ही उनका एक  से दो पदों की प्रोन्नति प्रदान कर दी जाती है । जैसे इस विभाग के चौकीदार को लोग होमगार्ड कहते है । होमगार्ड को लोग अपनी सेवा हेतु सिपाही जी के पद से नवाजते है और यथासम्भव इस पद के अनुसार ही सम्मान देते है, परन्तु उनके सामने । सिपाही जी की तो बात ही मत करिए अगर उन्हे गलती से भी किसी ने सिपाही जी बोल दिया तो सिपाही जी के गुस्से को शान्त करने हेतु उस बेचारें को उसकी अच्छी कीमत चुकानी पड़ती है । यह कीमत उस व्यक्ति के सामाजिक एवं आर्थिक योग्यता के मापदंड के क्रम में होता है ।
 सिपाही जी तो प्रायः दीवान जी के पदनाम से ही बुलाए जाते है । जब भी उन्हे इस उपनाम से पुकारा जाता है तो एक तरफ तो उनके मन में एक टीस उभर जाती है दीवान न बन पाने का, परन्तु दूसरे ही क्षण उनके अन्तर्मन से एक अकस्मात् ही मुस्कान उनके चेहरे पर झलकने लगती है , जो कि उन्हे बिना पद के ही अभी कुछ पल पहले प्राप्त हुआ था । जैसे ही किसी व्यक्ति नें उन्हे दारोगी जी के पदवी से अलंकृत करते हुए उनके चरण को अपने हाथों से स्पर्श किया तो उस व्यक्ति के काम होने की सफलता की सुनिश्चिता, बाकि लोगों से अत्यधिक हो जाती है । बस उसे इसके लिए प्रत्येक दो मिनट पर दरोगी जी(मूल पद सिपाही) के सामने हाथ जोड़कर एक ही बात दुहरानी पड़ती है कि बस आपकी कृपा है सब ,बाकि मेरी क्या औकात है ? हाथ जोड़ने और दरोगी जी के पैर पकड़ने का क्रम बस एक निश्चति अन्तराल में होना चाहिए । 
          इस प्रकार हमारे देश के समस्त सरकारी विभागों में एक पद होता है,  बड़े बाबू जी का । वैसे तो यह कोई राजपत्रित पद नही है और न ही इस पद का सरकारी कागजों में कहीं भी कोई उल्लेख मिलता है परन्तु लोगों द्वारा प्रदान की गयी इस पद की गरिमा अपने बड़े बाबू अर्थात् बड़े पिता जी से भी अत्यधिक होती है ,जो कि उन्हे अतिशय प्रिय भी होती है । किसी भी सरकारी पत्र को किसी भी स्तर के लेखक/रचयिता/निबन्धकार आदि द्वारा लिखी गयी हो परन्तु उस पत्र लेखन में व्याकरण की कमी से वो भले ही अनभिज्ञ हो लेकिन शब्दों के क्रम में क्या गलती है और उस पत्र के भाव को कैसे विपरीत किया जा सकता है, जिससे कि वह मूल-भाव से कोसो दूर चला जाए , उसका इन्हे बखुबी ज्ञान होता है ।
 जब तक इनकी कृपा दृष्टि आप पर नही होगी तब तक आप कोई भी पत्र पूर्णतया शुद्ध नही लिख सकते । आपका पत्र उसी वक्त पूर्णतया शुद्ध होगा जब आप इनके चरणों को स्पर्श करते हुए इन्हे इनके उपनाम से ससम्मान देने के बाद अपनी योग्यतानुसार और अपने काम के अनुरूप इनकी सेवा करेंगे । बड़े बाबू सभी सरकारी विभागों के शब्दों के जादूगर होते है । बड़े बाबू की गणित भले ही कमजोर हो लेकिन गणित में प्रतिशत निकालना बहुत अच्छा होता है । कितने पैसे में कितना प्रतिशत इनकों मिलेगा उसका कैल्कुलेशन तो ऐसा करते है, उस प्रकार से शुद्धतम् मान तो हमारे यहां के गणितज्ञ भी न निकाल पाए होंगे । आज मैं आपके एक सरकारी विभाग के बड़े बाबू जी का एक किस्सा बताता हुं –
एक दिन उन्हे एक ठेकेदार महोदय का पहले से तयशुदा रेट के अनुसार एक टेन्डर दिलवाने की बात हुयी । टेन्डर में प्राप्त पत्र में उन्होने लिखा –
        Approved
परन्तु जब कुछ समय बाद जब ठेकेदार महोदय पान खाकर आए तो बड़े बाबू जी को प्रणाम किया और अपने चेहरे पर विजयी मुस्कान लाते हुए बोले बाबू जी अब तो काम हो ही गया है । लाइए दीजिए कागजात अब चला जाए । बाबू जी को भी लगा कि लगता है कि ठेकेदार महोदय अभी शब्दों के साहित्य से ज्यादा चिर-परिचित नही है फिर क्या बाबू जी ने पत्र में लिखे  Not  Approved शब्द Approve आगे लिख दिया –
       Not  Approved      
इतना देखते ही तो ठेकेदार महोदय के पैर के नीचे से जमीन खिसक गयी । उनके अब तक के किए-कराए पर सब पानी फेर दिया था बाबू जी ने । क्युं कि शायद आपलोग नही जानते होंगे बड़े बाबू जी का शुद्ध पदनाम लिपिक संवर्ग होता है । इसलिए ये लोग लिपिकीय कार्य भले ही न करें लेकिन पत्रों के साथ लीपा-पोती करने के महारथी होते है ।
          घण्टों तक ठेकेदार महोदय के द्वारा विशेष अनुनय-विनय के बाद बाबू जी फिर से राजी हुए, टेण्डर पास करने के लिए लेकिन अब इतना समय नष्ट करने के फलस्वरूप ठेकेदार महोदय पर अब तक एक प्रतिशत की पेनाल्टी लग चुकी थी । बाबू जी ने उन्हे इस टेन्डर को पास कराने हेतु बताया कि अब इस फाइल को फिर से बनानी होगी । साहब के पास ले जाने पर साहब नाराज हो जाएगें उनको भी खुश करना पड़ेगा । सभी समस्याओं से अवगत कराते हुए ठेकेदार महोदय से एक सप्ताह का समय लिया और एक सप्ताह बाद एक प्रतिशत पेनाल्टी और चार डिब्बे मिठाई तथा अपनी पत्नी के लिए एक पलोटा साड़ी के साथ दुबारा बुलाया ।
          एक सप्ताह बाद नियत समय पर ठेकेदार महोदय आते ही बाबू जी को सर्वप्रथम साष्टांग प्रणाम किए और फिर उनके पूरे बटालियन को चाय-पानी कराने के बाद हिम्मत करते हुए फिर से अपने ठेके के बारे में पूछा- तो बाबू जी अपने चेहरे पर कुटिल मुस्कान लाते हुए बोले कि जब मैं हुं तो क्युं परेशान हो । आज तक मैने कभी भी आपको परेशान किया है या आज तक कभी ऐसा हुआं है जब मैने आपको परेशान किया हो । इतना सुनकर तो ठेकेदार महोदय मन में अचम्भित हो गए लेकिन सामने से मुस्कुराते हुए बोले अरे कभी नही । आपके रहते मेरा काम न हो, ऐसा तो असम्भव है । फिर क्या बाबू जी वहीं पुरानी कागज को उनके सामने रखते हुए बोले , ये लिजिए आपका टेन्डर पास हो गया है , जिस पर उसी शब्द के आगे बस इतना ही लिखा था-
          Note: Approved
इस पत्र के जवाब को देखते ही ठेकेदार महोदय ने बाबू जी के काबिलियत का उसी दिन लोहा मान लिए । उस दिन के बाद से दुबारा उन्हे बाबू जी के साथ इस प्रकार की हरकत करने का ख्याल भी न मन में आया ।
          इसलिए हे चराचर जगत् के प्राणियों ! मेरा आपसे अनुरोध है कि इस प्रकार के किसी भी व्यक्ति से जिन्हें किसी भी प्रकार के उपनाम की संज्ञा प्रदान की गयी हो कृपया उनसे उचित दूरी बनाएं साथ ही उनके समीप जाने पर इस संज्ञा शब्द (उपनाम) का प्रचूर मात्रा में प्रयोग करते हुए उनके चरणों के धुलि को अपने मस्तक पर लगाएं । जिसके की जीवन में आपको किसी भी प्रकार की कोई समस्या न हो ............
                                                                 
 पं0 अखिलेश कुमार शुक्ल की कलम से  

10 comments:

  1. नाम से ज्यादा, उपनाम नाम कमाता है. बहुत सुन्दर लिखा आपने.

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    1. सादर नमस्कार । बस एक छोटा सा प्रयास था । आपने आपना समुल्य दिया इतने विस्तृत लेख को पढ़ने के लिए आपका सादर धन्यवाद ।

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  2. इन्ही उपनामों से आज सरकार चलती है अभिकान्श्तः ...
    बहुत खूब ...

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    1. आदरणीय सादर नमस्कार ,
      मेरी रचना पर अपनी प्रतिक्रिया देकर उत्साहवर्धन हेतु आपका धन्यवाद ।

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  3. अति सुंदर👌
    राकेश

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    1. सादर धन्यवाद मित्र आपका ।

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  4. जय श्री कृष्ण 🙏🙏🙏

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