Tuesday, May 5, 2020

कविता - कहानी बचपन की

कहानी बचपन की

कहानी बचपन की


बचपन क त अजब कहानी, हम ही राजा हम ही रानी,
बीच दुवारे दिन भर खेली, आनी-पानी गो-गो रानी,
होत सबेरे खेलई जाई, भरी दुपहरी वापस आयी,
पापा क जब गाली खायी, कौनउ रंगे तब नहायी,
बाबू त दिन भर डांटइ, औ संगे दुई कंटाप लगावइ,
चाचा त सीधइ मोहें से, बातउ तक न कभउ करई,
बीच दुवारे बड़का भइया, मन लगाइ के गरियावइ,
ताना देयी में हमरी भौजी, रहिन मंथरा क माई,
ओनके देख के गांव हमार, पूजई लागइ बरम गोसाई ।

भौजी क हमरें गजब कहानी, होत सबेरे भवानी आवइ,
सबसे पहिले श्रृंगार करइ, फिर जाई के बात करइ,
करियहवा बर्तन जैसा ,मोह ओनकर जब देख लिहिन,
सांपे के केचुर जैसन, झोटी आपन बिखेर लिहिन,
नागिन जैसन रूप सुन्दरी, देखे के बाद त कांप गवा,
के कहई चाय औ पानी, पेटे क पानी सुख गवां,
दाना-पानी सब छोड़ि-छाड़ के, साष्टांग प्रणाम करइ लागे,
देखतइ गुस्सा ओनकर हम, जान छोड़ाई के सीधइ भागे,
कौआ जैसन मधुर राग से, जी भर के आशीष दिहिन,
सास-ससुर औ बबुआ पर, अमृत वर्षा करवाए दिहिन ।

भौजी के एक भैया, भौजी से त बीस रहे,
जब देख घरवै हमरै, बीसन हफ्ता टिकल रहे,
कामें के चक्कर में दिनभर ,भैया क निकलन खीश,
दुध दही औ खोवा से , सार भवा बैंलन से बीस,
भैया क जीवन भ दूसर, धान कुटावई लइके मूसर,
भरी जवानी भईया क, लइ लिहिन भवानी भौजी क ।

सासु के त गरदा समझइ, ससुर बेचारा डरल रहइ,
ननदे के त हाड़ चबाइ, जैसे नेउर साप के खाइ,
नैहरवा के बारे में त , बात मत करा,
आपन इज्जत समझत होए, नैहर हमरे जाय मत,
सासु से दिन भर बोलइ, तु हमके माटी-गोबर समझुं का,
हमरे नैहर के बारे में, तु का जनबु,
न कुछ देखइ, न कुछ जानइ,
जब देख बुढ़िया के दिन-भर, लपर-लपर इ जीभ चलावइ ।

नैहर(मायका) का वर्णन -

खपरैले में ताजमहल है, कुआँ ओनकर चांद बाउड़ी,
कुतुबमीनार में भैंस बंधाई, छप्पन भोग गांव भर खाइ,
भौजी के घर क बात निराला, रात अमावस घनघोर उजाला,
काजू-कतली पंचभोग क, ग्राम देव के भोग लगे,
औटल दुधे क रबड़ी त, घर क पड़वा रोज पिए,
किला बना है लघुशंका बिन, ओसे उपर बिन शीशमहल,
रंगमहल है नाचई बिन, सोवई बिन त हवामहल,

संस्कार त पूछ जिन, इज्जत समझे त आए जिन,
सरहज क त बात जिन कर, रूप-माधुरी सुरपुर-बाला,
ओनके घुँघट के अन्दर त, चक्रव्यूह के भेद छिपा बा,
चक्रव्युह के समस्त योद्धा, बेकार हएन सारन के आगे,
हरियर बांसे के पोपल जैसा, हाथ फुलल है, गोड़ फुलल बा,
गीता ज्ञान से भरल हएन, बस भरी समाज न बोलइ आवइ,
लीलाधर भी चकित होइ गएन, जब देखी लीला भौजाई क ।

छोटके भैया के ससुरारी में , साली क बियाह पड़ल,
जब समय निचकाई गइल, ससुरारी से नेवता आई गईल,
बोलेन, देखः,  तोहई एक जिम्मेदार हय,
बिटिया क तु बड़भाई समझि के, कन्यादान लिखाई देहे ,
हमहुं त छोटका जीजा रहली,दुई सीट कपड़ा बनवाई लिहिन,
जुता-मोजा त मांग लिहिन, बाल-मूछ रंगवाई लिहिन,
जेठ दुपहरी में सइकिल से, कौनऊ रंगे ससुरारी पहुंचा,
मीठा क त बात जिन कर, खटिया तक कौनउ न पूंछा,
भला करई, वांह भलमनई कुक्कुर क,
रस्ता भर भुकत-भुकत, चेहरा ओकर मुर्झाइ गयील,
गांव भरे में भुंक भुंक, बस एकई बात कहल उ कुक्कुर,
देख हो-
छोटकु जीजा मोर आई गईल,
छोटकु जीजा मोर आई गईल,

ससुरे क त बात जिन करा, सरएउ सरए पूरा लुच्चा ।
पूर्व जनम का पूण्य रहल, चाहे परताप रहल होई,
घंटा भर क समय बीत गवां, पर घरवा से निकला न कौनऊ ,
संझा के बेला जब सूरज डूब गईल, कुक्कुर धान चबाई गईल,
लड़िका क रोउब सुनि के, सासू जी क नींद टूटल,
तब पहिन के चप्पल, भड़-भड़ात बहरे निकलिन,
निकरिन ! बोलिन! का हो पाहून ! कब आय तु,
जा बाबा ! संदेशवउ न भेजवाये तु,
अरे, बड़किन छोटकिन कौनऊ से कहि देते,
नाही त घरवई में चलि आए होत ,
देखत-देखत तोहके दिन भर, पेटवा का भुख मिटाई गइल,
बैठे-बैठे दिन भर मचिया पर, नीदिंया रचि का आइ गइल,
हमरे मोहे से पियास के मारे,बोल न एकउ निकला,
लेकिन बुढ़िया अपने पंचउरा से, जब खाली पावई तब न,
भला होई गिरधारी क , जौन नहकई तब से आई गइल,
बुढ़िया से बोलेन लगले कि,मेहमनऊ के पनियउ दिहलु,
या मचिया चढ़ि के बैठि हऊ, झुठई परपंची सुनाई रहूं,

जा देवर, तोहके दिनभर हम बोली थ,
मनई त देख लिहा करते, तब रचि क बोला करते,
बेमतलब क झूठ-फुंरा तु हरदम बोल थ,
दांत निकाले दिन भर तु , मेहरि देखइ निकल थ ।

हे छोटकी, तोरे लाज न रचकऊ आवता,
पाहुन के बैठउले बा और बीच दुवारे मटकता,
जौन दिनभर तु गांव भरे में मटकेलु,
बीच दुवारे एक टांगे से दिनभर तीता खेले लुं,
आवई दे बाबू के आज, न पिटवाये त ! तोरउ माईं न हम ,
जो जल्दी पानी लइयांउ, और हां । संघे चीनियउ लेते आएं ,
छोटकी खेलई के चक्कर में, प्लेटे में गट्टा डाल दिहिस,
पाथर जैसन गट्टा तोड़ई के चक्कर में, दांत टूटी मोर चार गएन ।

हे हो, हमके का,
हमहुं देखा जब हाल अपने सढ़ुवईनिन क,
बिना डाल क पात भयल, दांते क सब दुःख भुल गयल,
खिसियानी बिल्ली के जइसन , जब उ घुरेस हमके,
हिम्मत मोर सुखाइ गवां, अन्दर क खुन सुखाई गवां,
औ नउके ससुरारी के आगे ,नाही हमार ठेकान लगां,
तब पैर पकड़ लिन औ बोला, आदेश करे अब पापा जी,
जनते हउवै, दुनऊ बर्दा क गोरूवारी-
हमरे मत्थे ही परल रहीं,
कौनऊ रंगे जान छोड़ाई के, भाग पराने नहरी तक ।

फिर ससुरारी क मोह हम , जीवन भर के भुल गईल,
अपनऊ आंखी खूल गईल, दूसर हमहूं चेताई गईल,
जौ आपन इज्जत चाहत हो त, ससुरारी से दूर रहत जा,
चाहे भौजी क लात सहत जा, चाहे सासु क बात सहत जा,
वांह दिन से त बस एकइ बात, गांव भरे में परचार करी,
कि ऐसन रिश्तेदार गएन भवानी के, जे परपंच गढ़ई बिन पानी के ।
                                                      
                                                                    पं0 अखिलेश कुमार शुक्ल की कलम से

कहानी बचपन की


10 comments:

  1. Bahut sundar rachna hai aapki Akhilesh bhai...

    ReplyDelete
  2. बहुत ही अच्छी कविताएँ लोकभाषा की मिठास अद्भुत है |

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीय सादर प्रणाम ,
      अपनी मातृ-बोली में एक रचना लिखने का छोटा सा प्रयास है । आपनें अपना बहुमुल्य समय देकर इस पोस्ट पर उत्साह वर्धन हेतु प्रतिक्रिया देने के लिए सादर धन्यवाद ।

      Delete
  3. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(१६-०५-२०२०) को 'विडंबना' (चर्चा अंक-३७०३) पर भी होगी
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
    महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    **
    अनीता सैनी

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीया अनीत सैनी जी सादर प्रणाम ,
      आपके द्वारा अपना महत्वपूर्ण समय देकर मेरी इस रचना कहानी-बचपन को जो कि मेरी मातृ-बोली में लिखी गयी एक रचना है उसे पढ़ने के लिए धन्यवाद आपका । मैंने इस रचना को किसी को भी नही शेयर किया क्योंकि मुझे लगा कि लोग इस रचना को शायद न पढ़ना चाहे परन्तु आपके द्वारा मेरी इस रचना को पढ़ना मेरे लिए सौभाग्य की बात है साथ ही मेरी इस रचना को शनिवार(१६-०५-२०२०) को 'विडंबना' (चर्चा अंक-३७०३) में चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए भी कोटि-कोटि धन्यवाद आपका ।
      - अखिलेश कुमार शुक्ल

      Delete

प्रीत

      प्रीत तेरे रंग की रंगत में, कही रंग ना जाउं, तेरे साथ रहने की, कसमें ही खाउ, निज प्रेम से बांध लूं, अब तुम्हे मैं, मेरे ...