Thursday, May 28, 2020

अनकही

अनकही

        सुनीता ! सुनीता ! राहुल नहाते हुए बाथरूम से अपनी पत्नी को दो बार आवाज देता है लेकिन सुनीता किचन में भोजन बना रही थी , बीच-बीच में आकर कमरें में एक-एक सामान यादकर राहुल के जरूरी सामानों के बेड पर रख रही थी । दो-तीन शर्ट देखने के बाद एक शर्ट-पैन्ट निकालकर बेड पर रख देती है । सुनीता भी किचन से आने के कारण पसीने से पूरी तरह लथपथ थी तो अपनें आंचल से शीशे में मुंह देखकर उसे पोछते हुए उसी आंचल से अपने चेहरे को हवा देने के कारण वह राहुल की आवाज नही सुन पाती है ।
        तभी अचानक बाथरूम का दरवाजा खुलता है और राहुल एक तेज आवाज में जोर से चिल्लाता है सुनीता । ध्यान कहां है तुम्हारा ? दिन भर बैठकर अपना खुसट सा चेहरा आईना में देखती रहती हो । कितनी बार बोला हुं कि तौलिया बाथरूम में रख दिया करों नहाते वक्त । एक तो लेट हो रहा है आफिस जाने के लिए और एक तुम हो कि एक काम नही कर सकती हो । सुबह से बस बैठी हो बिना बोले तुम एक काम नही कर सकती हो ।
        सुनीता को अब तक नही समझ आया कि राहुल किस बात के लिए उसे इतना सुना रहा है । वैसे शादी के इतने वर्ष बीतने के बाद अब तो वह राहुल के गुस्से की बातों को अनसुना करके बस राहुल के ही सारे काम को करने में लगी थी । सुनीता तुरन्त बाथरूम से जाकर राहुल को तौलिया ही दे रही थी कि किचन से कुकर ने सीटी मारकर सुनीता को बुला लिया , जैसे कुकर भी ताना मार रहा हो सुनीता को, कि तुम एक काम बिना बोले न कर सकती । मैं यहां कब से तुमको आवाज दे रहा हुँ और तुम आंगन में नाच रही हो ।
        किसी तरह से सुनीता सारा भोजन तैयार करने के बाद राहुल को पूजा करनी थी तो उसके लिए दीपक को बनाकर बगल में ही माचिक आदि रख देती है, लेकिन जैसे ही राहुल देखता है तो फिर से आवाज देता है कि थोड़ा ध्यान से पूजा कर लिया करों । काश तुम बिना बोले एक भी काम कर लेती ।
        सुनीता बिना कुछ बोले सीधे बेडरूम में आती है और बेड पर ही भोजन लगाकर राहुल का इन्तजार करने लगती है । राहुल पूजा करने के बाद कपड़े पहनने लगता है । कपड़े पहनते वक्त वह फिर सुनीता को टोकता है कि कम से कम एक शर्ट तो ढंग से प्रेस कर दिया करों । दिन भर बैठी रहोगी लेकिन तुमसे एक कपड़ा तक प्रेस नही हो पाता सही से । उसके बाद वह भोजन करने लगता है । 
        सुनीता उसके पर्स, पेन, घड़ी, हैंकी सभी को एक-एक करके राहुल को देती जाती है । राहुल सीधे टिफिन बाइक लेकर बाइक पर बैठता है तो देखता है कि सुनीता जल्दी से भागते हुए आ रही है , उसके हाथ में मोबाइल था जो कि लाकर राहुल को देती है और अपने सजल आँखों से राहुल की तरफ देखती रहती है, जैसे कि वह चाहती हो कि राहुल बस एक बार गले लगकर उससे बोल दे कि दिन-भर आराम से रहना और भोजन कर लेना लेकिन राहुल तो जल्दी में था , तो लापरवाही से बोलता है कि क्या हुआं, मुंह क्यु बनायी हो , कुछ बोलना हो तो बोलों नही तो मैं निकलू मुझे वैसे भी देरी हो रही है । इतना सुनने के बाद सुनीता अपने आंखों के आंसुओं को छिपाते हुए बस इतना ही बोल पाती है कि काश ! आप बिना बोले ही मेरी अनकही बातों को समझ पातें.............     इतना बोल के सुनीता गेट बन्द करके अपने कमरे में चली जाती है और राहुल के कल के कपड़ों को लाकर धुलने लगती है ।

पं0 अखिलेश कुमार शुक्ल की कलम से


22 comments:

  1. बहुत खूब मित्र। दिल को छूने वाली एवं आधुनिक भाग दौड भरे जीवन में जीवन की सच्चाई को आइना दिखाती लघु कथा। जिससे सभी को सरोकार होना चाहिए और सभी को सीखना चाहिए। जीवन संगिनी जो कि हर समय घर परिवार में लगी रहती है उसे कुछ पल का एहसास ही तो चाहिए होता है।

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    1. आपने अपना अमूल्य समय दिया इसके लिए सादर धन्यवाद

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    1. सादर धन्यवाद आपने पढने के साथ ही उत्सहावर्धन भी किया अपने अनुज का ।

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१३-0६-२०२०) को 'पत्थरों का स्रोत'(चर्चा अंक-३७३१) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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    1. आदरणीय दीद सादर प्रणाम,
      मेरी इस रचना को अपने पटल 'पत्थरों का स्रोत'(चर्चा अंक-३७३१) पर रखने के लिए सादर धन्यवाद ।

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    1. सादर आभार आपका । इसी प्रकार से उत्साहवर्धन करते रहिए ।

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  5. वाह!सुंदर और सटीक ।

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    1. सादर नमस्कार । रचना हेतु प्रेरित करने के लिए सादर धन्यवाद आपका ।

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    1. सादर धन्यवाद आपने समय दिया तथा कुछ नया लिखने हेतु प्रेरित भी किया ।

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  7. असलियत यही है ,करने वाले को ही सुनना पड़ता है ,अच्छी कहानी

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