प्रीत

      प्रीत

तेरे रंग की रंगत में,

कही रंग ना जाउं,

तेरे साथ रहने की,

कसमें ही खाउ,

निज प्रेम से बांध लूं,

अब तुम्हे मैं,

मेरे माधव को मै ही,

चवर बस घुमाउ,

समझता जगत ये,

पागल भिखारी,

फटी सी दुशाला से,

फिर भी तुझको रिझाउ,

हे मेरे कान्हा, बांके बिहारी,

जब प्रीती में तेरे,

तो शरण किसके जाऊ ।

                                                                 पं0 अखिलेश कुमार शुक्ल


Comments

  1. बहुत सुंदर भक्तिमय रचना

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