मेरी
प्यारी बेटी
अपने
माता के कोख से,
जन्म
जब लेती,
अपनी
किलकारियों की गूंज से,
मेरे
घर के सूने आंगन में,
खुशिया
भर देती,
मेरी
प्यारी सी बेटी ।
मेरे
हाथों को जब भी,
अपने
नाजूक हाथों से छूती,
मेरी
गोदी में आकर,
एकटक
नजर से ,
मुझे
बार-बार घुरती,
मेरी
छोटी सी बेटी ।
अभी
कल की तो बात है,
मैं
स्वयं एक बच्चा था,
पर
आज मेरी गुड़िया ने,
खींच
दी लकीर,
कल
तक मैं जहां था,
उसी
ही जगह पर,
आज
खड़ी मेरी बेटी ।
मुझे
देखते ही वो,
जी
भर के खूब रोती,
गिरते
है उसके आंखों से
आंसुओं
के मोती,
लिपटती
वों मुझसे,
लताएं
जैसे बेल से,
समेटता
मैं उसको,
अपने
कंधे के मेल से,
पहचानती
वो मुझको ,
न
जाने किस तकनीक से,
लगते
ही गले मेरे ,
मुस्कान
वो बिखेरती,
टक-टकी
निगाहों से,
मेरे
भाव को पहचानती,
उसके
कोमल कपोल पर,
गुदगुदी
को मै करता,
क्षण
भर में ही खुशी से,
सिमटती
वो मुझमें,
एहसास
भी पिता का,
कराती
थी बेटी ।
सामने
मेरी बेटी,
जब
दिखाई न देती,
मुझे
उसकी आवाज,
सुनाई
न देती,
खिलौने
भी उसके,
जब
दिखते अकेले,
ढुंढता
था मैं उसको,
पड़ोसी
बगल,
माथे
पर मेरे,
उभरती
सिकन,
बेचैनी
के मारे,
पोंछता
पसीना,
डांटता
उसकी मां को,
पूछता
उसकी मां से,
कहां
मेरी बेटी ?
कहां
मेरी बेटी ?
इसी
तरह धीरे-धीरे ,
बड़ी
होती बेटी ।
पं0 अखिलेश कुमार शुक्ल की कलम से
Apki Kavita se mujhe apni beti ki yad as gayi
ReplyDeleteThanku bhai
DeleteBahut sundar kavita likhate ho bhai
ReplyDeleteThanks
DeleteGood thoughts about daughter
ReplyDeleteapke bachche ko samarpit
Deleteअदभुत रचना👌👌👌👌👌👌👌
ReplyDeleteबस भाई इसी तरह उत्साहवर्धन करते रहिए आप
DeleteBahut sundar
ReplyDeleteVery nice lines
ReplyDeleteBahut sundar poem h majduro par
ReplyDeleteअति सुंदर रचना है
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