प्रेम (love poem)
प्रेम (love poem)
प्रेम मैं उनसे करू,
आठों पहर उन पर मरूं,
होती सुबह; उनके
याद से,
आज अश्रु गिरे; उनके
बात से ।
मेरी मुस्कान ही तेरा जान थी,
मेरी आवाज ही तेरी अजान थी,
मेरी अधर की ये लालिमा,
तेरा प्यार थी, तेरा चाह थी,
मेरी हाथ की ये अंगुलिया,
तेरे साथ थी , तेरे माथ भी,
मेरे बाल भी तेरे छांव थे,
तेरा छाव ही मेरी अश्क थे,
मेरे अश्क ही तेरा लफ्ज थे,
तेरा लफ्ज ही मेरी आस थी,
मेरी आस ही तेरा श्वास थी,
तेरा श्वास ही मेरी जान थी ।
मेरी जान ही तेरा प्यार था,
तेरा प्यार ही मेरी आरजू थी,
तेरा लक्ष्य ही मेरा प्यार था,
मेरी नग्नता ही तेरा चाह थी,
तेरा चाह ही, मेरी जिस्म थी,
मेरी जिस्म ही तेरा भाव था,
तेरा भाव ही मेरा प्यार था,
मेरी जिस्म की , तुझे भुख थी,
क्या ये भुख ही,तेरा प्यार था ।
तेरा प्यार ही मेरी अंकुरण,
मेरी अंकुरण ही तेरी बाध्यता,
तेरी बाध्यता ये समाज थी ,
मेरा समाज ही ये जिस्म थी,
तेरा भाव ही मुझे त्यागना,
मुझे छोड़ना ही तेरी राय थी,
तेरी अंकिनी, तेरा अंकुरण,
तेरे साथ है , तेरे पास है,
मेरा छाव भी अब दूर है,
मेरा अंकुरण भी अब दूर है,
तु मस्त है , मैं अस्त हुं,
फिर भी मैं आज सशक्त हुँ ।
पं0 अखिलेख कुमार शुक्ल की कलम से
Nice
ReplyDeleteThanku
DeleteVery Nice Bhai 💯
ReplyDeleteधन्यवाद भाई
DeleteBahut khubsurat
ReplyDeletealot of thanks
DeleteBahut khubsurat
ReplyDeletethanks
ReplyDeleteवाह भाई बहुत खूब
ReplyDeleteBahut sahi mitra
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