बीमारी
गांव क याद सताव ता,
भागि-भागि सब आव ता,
बिना बात क बाबू से-
झगड़ा कइ के एक दिन,
मेहर लई के भाग रहेन,
परदेसवई में कमात
रहेन,
पिच्चा बर्ग खात
रहेन,
औ खेत कियारी भुल गयेन
।
साल भरे क दिन बीत
गवा,
पर कभउ न एकउ फोन
केहेन,
बिगड़ल तबियतवा बाबू
जी क,
तबहुं त नाही याद
करेन ।
गईल नौकरी, भईल
बीमारी,
तरस गएन बिन खाना-
पानी,
अब अईसन भीषण लाचारी
में,
याद आवैं महतारी क ।
प0 अखिलेश
कुमार शुक्ल की कलम से
Bahut marmik
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