आदि शंकराचार्य

आदि शंकराचार्य का संक्षिप्त परिचय सनातन धर्म/वैदिक धर्म के इतिहास में आचार्य शंकर का प्रादुर्भाव हिन्दु धर्म के लिए एक नवीन युग का प्रारम्भ है । हमारी पुरानी परंपराओं के प्रतिष्ठाता आचार्य शंकर राष्ट्रीय एकता के प्रतीक/अखंड भारत की स्थापना में सांप्रदायिक/सामाजिक सद्भाव के सुदृढ़ सेतु हैं। आज के कुत्सित अशांत संपूर्ण जगद् में सभी प्राणियों को शांति और सौहार्द/राष्ट्रीय चेतना/विश्व बंधुत्व एवं वैदिक संस्कृति का पावन संदेश देने के लिए परम पुज्य श्रीमद् आद्य शंकराचार्य का अविर्भाव 2593 कल्पद्ध 509 पूर्व नंदन संवत् , शुभ ग्रहो युक्त वैशाख शुक्ल पंचमी मध्याह्न में केरल स्थित कालड़ी ग्राम में ब्राह्मण दंपति के यहाँ हुआ था । इनके पिता का नाम शिवगुरू तथा माता का नाम आर्यम्बा था । यह निर्विवाद है कि आदि जगतगुरु शंकराचार्य भूतमानव भूतेष आशुतोष महेश्वर भगवान शंकर के अवतार थे । आचार्य शंकर ने अपने धर्मोद्धार संबंधी कार्यों को अक्षुण्ण करने हेतु भारत के अति सुप्रसिद्ध धर्मों में चार पीठों(मठों) की स्थापना की । पूर्व में जगन्नाथपुरी में गोवर्ध्दन पीठ , उत्तर में हिमालय बदरिका आश्रम म...